Rag Darbari

Home > Other > Rag Darbari > Page 84
Rag Darbari Page 84

by Shrilal Shukla


  और तो और, रंगनाथ भी अब कभी–कभी खन्ना से बात करने लगा है, इधर उसके स्वास्थ्य का विकास तो हुआ है, पर मस्तिष्क दूषित हो गया है।

  कोअॉपरेटिव इन्स्पेक्टर युधिष्ठिर का बाप बनता है। उसने अपनी एक रिपोर्ट ऊपर भेजी है कि रामस्वरूप सुपरवाइज़र ने जो दो हज़ार रुपये से ऊपर का ग़बन किया था, वह वैद्यजी की जानकारी से हुआ है और उसने वे रुपए वैद्यजी से वसूलने का प्रस्ताव किया था। मैनेजिंग डायरेक्टर की हैसियत से वैद्यजी ने जो रिपोर्ट इन्स्पेक्टर के ख़िलाफ़ भेजी थी, उसके लिखित होने के बावजूद उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है और अनेक प्रयास करने के बावजूद उसका तबादला नहीं हो पा रहा है। और तो और, उन्होंने लिखकर दिया था कि इन्स्पेक्टर शराब पीता है और इस पर भी अभी तक कोअॉपरेटिव विभाग में ज्वालामुखी के विस्फोट की बात तो दूर रही, भूकम्प तक नहीं आया है।

  बद्री पहलवान पिता के पास तख्त पर एक पैर रखकर, उस पैर के घुटने पर एक हाथ की कोहनी रखकर और हाथ के ऊपर अपनी ठुड्‌डी रखकर खड़े थे। पूरी बात सुनकर बोले, ‘‘बस ?’’

  वैद्यजी ने कहा, ‘‘तुम इसे ‘बस’ कहते हो ? मेरी सेवाओं का यही पुरस्कार है ?’’

  बद्री पहलवान ने पुरस्कारवाले हिस्से को अनसुना कर दिया। बोले, ‘‘ये झगड़े तो दस मिनट में ख़त्म हो जाएँगे। कोअॉपरेटिव इन्स्पेक्टर को दस जूते मार दिए जाएँ, ठीक हो जाएगा। डिप्टी–डायरेक्टर न मानें और जाँच करने आएँ तो उनका भी किसी से भरत–मिलाप करा देंगे। खन्ना मास्टर के लिए हुकुम कर देंगे कि वे और उनकी पार्टी के लोग कल से कॉलिज के अन्दर न जाएँ, सबको बराबर ग़ैरहाज़िर बनाकर पन्द्रह दिन बाद निकाल बाहर कर देंगे।...’’

  वैद्यजी ने टोककर कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकेगा ?’’

  “प्रिंसिपल करेगा। त्रिपाठीजी को पारसाल कैसे निकाला था ? उन्हें एक महीने ग़ैरहाज़िर रखा गया था कि नहीं ?’’

  वैद्यजी के चेहरे पर कुछ विश्वास की–सी झलक देखते हुए बद्री पहलवान ने कहा, ‘‘तुम यह सब ऐसे ही छोड़ दो, प्रिंसिपल ठीक कर लेगा। छोटे ने इधर दो–तीन पट्‌ठे तैयार किये हैं। कॉलिज के बाहर उन्हीं की ड्यूटी लगा देंगे। खन्ना को कॉलिज के भीतर जाते हुए जूते मारेंगे।

  ‘‘रंगनाथ चाहे जितना गिचिर–पिचिर करे, उसकी फिक्र क्या ? शहर का आदमी है। सूअर का–सा लेंड़–न लीपने के काम आय, न जलाने के। तुम उधर देखो ही नहीं, घबराकर वापस भाग जाएगा।

  ‘‘रहे रुप्पन, उन्हीं को दो–चार लप्पड़ मारने होंगे। सो जब कहोगे, मार दूँगा।’’

  वैद्यजी बद्री की प्रतिरक्षा-योजना सुनकर थोड़ी देर शान्त भाव से बैठे रहे। फिर अचानक बोले, ‘‘रामदयाल तिवारी ? उसकी अपील का क्या होगा ? हाईकोर्ट में अपील की कोई तिथि निश्चित हुई है क्या ?’’

  बद्री ने अपना पैर तख़्त पर और ज़ोर से रोप दिया। बोले, ‘‘उसकी भी बात कर लेंगे। पहले यहाँ की बातें हो रही हैं तो हो लें। बताओ, यहाँ पर चिन्ता की कोई और भी बात बची ?’’

  वैद्यजी ने सोचते हुए कहा, ‘‘यहाँ तो ठीक ही हो जाएगा, पर ऊपर की राजनीति गड़बड़ा रही है। तभी क्षुद्र अधिकारियों का साहस बढ़ गया है। कोअॉपरेटिव इन्स्पेक्टर का तबादला तक नहीं हो रहा है, इसके पीछे बड़ी–बड़ी राजनीति है। यही चिन्ता का विषय है।’’

  बद्री पहलवान ने कुछ झुँझलाकर कहा, ‘‘राजनीति तो तुम्हीं जानो। हमने तो एक बात कह दी। इन्स्पेक्टर को दस जूते लग जाएँगे। न एक कम, न एक ज़्यादा।’’ कुछ सोचकर उन्होंने एक संशोधन रखा, ‘‘वह छुट्टी लेकर बाहर निकल जाए तो जूता लगाने की कोई कसम भी नहीं है। छोड़ देंगे।’’

  वैद्यजी ने ज़ोर से साँस खींची। उनकी देह ढीली हो गई। हाथ सिर पर पहुँच गया, पर चूँकि इस वक्त वे साफ़ा नहीं बाँधे थे, इसलिए उसे कसने के बजाय उनका हाथ उनके अपने मस्तक पर ही आशीर्वाद बरसाने लगा।

  उन्होंने फिर पूछा, ‘‘रामदयाल तिवारी का क्या करोगे ?’’

  बद्री पहलवान उसी तरह बोले, ‘‘अब यह बात पूरी हो जाने दो।’’

  उन्होंने कुरते की जेब से कुछ नोट निकाले। वैद्यजी को देते हुए बोले, ‘‘यह तेरह सौ रुपिया है। सुना है, सुलह के कुछ रुपये दारोग़ाजी भी दे गए हैं। उन्हें मिलाकर दो हज़ार पूरे कर डालो। कोअॉपरेटिव�
��ाले ज़ोर डालें तो पहले ही जमा कर दिया जाएगा।’’

  वैद्यजी ने गम्भीरता से कहा, ‘‘दारोग़ाजी ने जो दिया था वह थोड़ा तो जोगनाथ को दे दिया गया है। चार–पाँच सौ बचता है। वह जनता का है।’’

  ‘‘कोअॉपरेटिव भी जनता की है।’’

  वैद्यजी ने बद्री को नोट वापस कर दिए। बोले, ‘‘तो रखे रहो, आगे देखा जाएगा।’’

  बद्री इसके बाद अपने मित्र की बात करने के लिए नहीं रुके। मकान के अन्दर जाने के लिए वे एक बार अपने बाप की ओर घूमे, फिर एक अजब–सी आवाज़ में, जो पता नहीं इस बीच में वे कहाँ से सीख आए थे, फुसफुसाकर बोले, ‘‘बापू, गयादीन से भी बात कर लो।’’

  बद्री पहलवान कुछ सालों से अपने बाप को बिना किसी सम्बोधन के ही पुकारते थे। बचपन में वे उन्हें बापू कहते थे, पर जवान होने पर कुश्तीबाज़ी की शुरुआत होते ही उन्होंने यह बचकानी हरकत छोड़ दी थी। वैद्यजी ने बद्री पहलवान की बात सुनी और न जाने क्यों आँखें मूँद लीं।

  शिवपालगंज के बच्चे–बच्चे को प्राणिशास्त्र का यह नियम याद था कि होशियार कौआ कूड़े पर ही चोंच मारता है। वैद्यजी के साथ यही हुआ।

  इस कोअॉपरेटिव इन्स्पेक्टर ने बड़ी कठिनाई पैदा कर दी थी। पहलेवाला इन्स्पेक्टर जनतान्त्रिक पद्धति से काम करता था, यानी जब यूनियन की इमारत पर भंग पिसने का प्रबन्ध होता तो सिल पर लोढ़े की पहली चोट पड़ते ही वह दूसरे सदस्यों से पहले ही वहाँ आ जाता और जनता का आदमी बनकर वहाँ के कार्यक्रमों में भाग लेता था। यह इन्स्पेक्टर भंग का शत्रु और वैद्यजी को प्राप्त होनेवाली सूचना के आधार पर और वैद्यजी द्वारा ऊपर के अधिकारियों को लिखे गए पत्र के अनुसार, शराब का शौकीन था। शराब के साथ ही उसे ईमानदारी की लत पड़ गई थी और यूनियन के सदस्यों से सहयोग करने की जगह वह उनका विरोध करने लगा था। वैद्यजी को पहले विश्वास था कि इन्स्पेक्टर का तबादला हो जाएगा, पर उनके पत्र का जब कई दिन तक उत्तर न आया तो उन्हें चिन्ता हुई। पता लगाने पर विदित हुआ कि सारा खेल राजनीति का है और जिस तरह जनसेवकों का स्थानान्तरण राजनीति द्वारा हो सकता है, उसी तरह उच्चतर राजनीति द्वारा वह रुक भी सकता है। तब उन्हें मालूम हुआ कि इन्स्पेक्टर के हाथ शराब की बोतल और कलम तक ही नहीं, राजनीति की डोरियों तक भी पहुँचे हुए हैं।

  एक दिन वैद्यजी अकेले ही मित्रता की यात्रा पर निकले पड़े। शहर पहुँचकर सवेरे से ही उन्होंने दर्जनों बँगलों के चक्कर लगाए। कुछ जगहों को छोड़कर–जहाँ घण्टा–आध घण्टा बाहर बैठना अपमानसूचक स्थिति नहीं माना जाता था–उनका उल्लासपूर्ण स्वागत हुआ और धक्का खाया हुआ आत्मविश्वास उनके भीतर एक बार फिर से फनफनाकर उठ खड़ा हुआ। बहुत–से बँगलों पर लोग उनसे वीर्यपुष्टि की गोलियाँ पाकर प्रसन्न हो गए। बहुतों को गोलियों के साथ यह सूचना भी देनी पड़ी कि उनका परिचय कुछ दिन पहले एक उच्चकोटि के ज्योतिषी से हो गया है और यदि श्रीमन् अपनी जन्म–कुण्डली दे दें तो उस पर पुन: विचार कराया जाय। कुछ लोगों का उत्साह बढ़ाने के लिए गोलियों की प्राप्ति और ज्योतिषी का परिचय मात्र काफ़ी नहीं था। उन्हें बताना पड़ा कि हृषीकेश के अमुक महात्माजी अमुक तिथि को यहाँ आनेवाले हैं–हाँ, वही महात्माजी जिनके आशीर्वाद से अमुक पुलिस कप्तान के विरुद्ध सारे आरोप मिथ्या प्रमाणित हुए और यही नहीं, उन्हें तत्काल पदोन्नति भी मिली–और उनसे रात्रि दस बजे के बाद मिलने में अधिक सुविधा होगी और श्रीमान् यदि चाहेंगे तो परिचय कराने के लिए उस दिन मैं भी आ जाऊँगा।

  उच्च स्तर के कई राजनीतिज्ञों और अधिकारियों को इस प्रकार परास्त करके अन्त में वे उस बँगले पर पहुँचे जहाँ से कोअॉपरेटिव–इन्स्पेक्टर की रक्षा का आदेश निकल रहा था। वहाँ उन्हें विदित हुआ कि सहकारिता–आन्दोलन में अब एक नये चिन्तन का संचार हुआ है जो भाई–भतीजावाद, जातिवाद, समाजवाद आदि उच्चवर्गीय सिद्धान्तों को एक में लपेटकर भविष्य के कार्यकर्ताओं की प्रेरणा का स्रोत होता। यह चिन्तन कुछ इस प्रकार का था : यदि तुम्हारे हाथ में शक्ति है तो उसका उपयोग प्रत्यक्ष रूप से उस शक्ति को बढ़ाने के लिए न करो। उसके द्वारा कुछ नई और विरोधी शक्तियाँ पै
दा करो और उन्हें इतनी मज़बूती दे दो कि वे आपस में एक–दूसरे से संघर्ष करती रहें। इस प्रकार तुम्हारी शक्ति सुरक्षित और सर्वोपरि रहेगी। यदि तुम केवल अपनी शक्ति के विकास की ही चेष्टा करते रहे और दूसरी परस्पर–विरोधी शक्तियों की सृष्टि, स्थिति और संहार के नियन्त्रक नहीं बने तो कुछ दिनों बाद कुछ शक्तियाँ किसी अज्ञात अप्रत्याशित कोण से उभरकर तुम पर हमला करेंगी और तुम्हारी शक्ति को छिन्न–भिन्न कर देंगी।

 

‹ Prev